बेबी जैसवाल-कागज का इस्तेमाल शुरू करने के साथ ही इंसान को ऐसी चीज की जरूरत महसूस होने लगी थी, जो इन्हें एक साथ नत्थी रखे। दुनिया की पहली स्टेपलिंग मशीन अठारहवीं सदी में फ्रांस में ईजाद हुई। फ्रांस के तत्कालीन सम्राट लुई पंद्रहवें के दस्तावेजों को नत्थी करने के लिए इस यंत्र का इस्तेमाल किया जाता था और हर स्टेपल पर शाही छाप अंकित होती थी। हालांकि स्टेपलर का सार्वजनिक इस्तेमाल उन्नीसवीं सदी में शुरू हुआ। 1866 में जॉर्ज मैक्गिल ने एक छोटा स्टेपलिंग उपकरण बनाया, जिसके लिए उन्हें अमेरिकी पेटेंट मिला। यह आधुनिक स्टेपलर का पूर्ववर्ती रूप था।
वर्ष 1877 में हेनरी आर हेल ने पहली बार ऐसी मशीन के लिए पेटेंट आवेदन किया, जो एक ही बार में स्टेपल को कागजों के अंदर धंसाते हुए इसकी पकड़ भी बना देती थी। इस वजह से कई लोग उन्हें आधुनिक स्टेपलर का आविष्कारक भी मानते हैं। वर्ष 1878 में ऐसी स्टेपलिंग मशीन अस्तित्व में आई, जिसमें एक साथ कई स्टेपल रखे जा सकते थे। 1879 को जॉर्ज मैक्गिल ने सिंगल-स्ट्रोक स्टेपल मशीन का पेटेंट हासिल किया। यह कारोबारी तौर पर पहला सफल स्टेपलर था। ढाई पौंड वजनी इस यंत्र में आधा इंच चौड़े तार के स्टेपल होते थे।
डिनर टेबल पर हुई थी सैकरीन की खोज
>दुनिया के पहले कृत्रिम स्वीटनर सैकरीन की खोज का श्रेय अमेरिकी रसायनशास्त्री इरा रेमसन और कांस्टेंटाइन फालबर्ग को जाता है। यह वर्ष 1879 की बात है। उस समय रेमसन और फालबर्ग कोलतार के एक व्युत्पाद (टोलुइन) पर शोध कर रहे थे। एक दिन वे प्रयोगशाला में देर तक काम करते रहे। घर जाने पर फालबर्ग बगैर हाथ धोए ही डिनर टेबल पर खाना खाने बैठ गए। उन्होंने ब्रेड का एक टुकड़ा लेकर जैसे ही मुंह में डाला, उन्हें यह कुछ मीठा लगा। वह समझ गए यह मीठापन उनके हाथ में लगे मिश्रण का है। उन्होंने आकर यह बात रेमसन को बताई, जो खुद भी खाने के दौरान इसका एहसास कर चुके थे।
वर्ष 1880 में रेमसन और फालबर्ग ने अपनी इस खोज को संयुक्त रूप से प्रकाशित किया। हालांकि 1884 में फालबर्ग ने अकेले ही सैकरीन का पेटेंट हासिल करते हुए व्यापक पैमाने पर इसका उत्पादन शुरू कर दिया, जिससे रेमसन खफा भी हुए। पहले विश्व युद्ध के दौरान शक्कर की किल्लत होने पर लोगों ने व्यापक पैमाने पर सैकरीन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। कैलोरी-मुक्त पदार्थ होने की वजह से साठ व सत्तर के दशक में डाइटिंग करने वाले लोगों के बीच भी इसकी लोकप्रियता बढ़ी।
वर्ष 1877 में हेनरी आर हेल ने पहली बार ऐसी मशीन के लिए पेटेंट आवेदन किया, जो एक ही बार में स्टेपल को कागजों के अंदर धंसाते हुए इसकी पकड़ भी बना देती थी। इस वजह से कई लोग उन्हें आधुनिक स्टेपलर का आविष्कारक भी मानते हैं। वर्ष 1878 में ऐसी स्टेपलिंग मशीन अस्तित्व में आई, जिसमें एक साथ कई स्टेपल रखे जा सकते थे। 1879 को जॉर्ज मैक्गिल ने सिंगल-स्ट्रोक स्टेपल मशीन का पेटेंट हासिल किया। यह कारोबारी तौर पर पहला सफल स्टेपलर था। ढाई पौंड वजनी इस यंत्र में आधा इंच चौड़े तार के स्टेपल होते थे।
डिनर टेबल पर हुई थी सैकरीन की खोज
>दुनिया के पहले कृत्रिम स्वीटनर सैकरीन की खोज का श्रेय अमेरिकी रसायनशास्त्री इरा रेमसन और कांस्टेंटाइन फालबर्ग को जाता है। यह वर्ष 1879 की बात है। उस समय रेमसन और फालबर्ग कोलतार के एक व्युत्पाद (टोलुइन) पर शोध कर रहे थे। एक दिन वे प्रयोगशाला में देर तक काम करते रहे। घर जाने पर फालबर्ग बगैर हाथ धोए ही डिनर टेबल पर खाना खाने बैठ गए। उन्होंने ब्रेड का एक टुकड़ा लेकर जैसे ही मुंह में डाला, उन्हें यह कुछ मीठा लगा। वह समझ गए यह मीठापन उनके हाथ में लगे मिश्रण का है। उन्होंने आकर यह बात रेमसन को बताई, जो खुद भी खाने के दौरान इसका एहसास कर चुके थे।
वर्ष 1880 में रेमसन और फालबर्ग ने अपनी इस खोज को संयुक्त रूप से प्रकाशित किया। हालांकि 1884 में फालबर्ग ने अकेले ही सैकरीन का पेटेंट हासिल करते हुए व्यापक पैमाने पर इसका उत्पादन शुरू कर दिया, जिससे रेमसन खफा भी हुए। पहले विश्व युद्ध के दौरान शक्कर की किल्लत होने पर लोगों ने व्यापक पैमाने पर सैकरीन का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। कैलोरी-मुक्त पदार्थ होने की वजह से साठ व सत्तर के दशक में डाइटिंग करने वाले लोगों के बीच भी इसकी लोकप्रियता बढ़ी।
बहुत बडिया जान्कारी है आप्के ब्लोग पर मैंभी इसका लाभ उठाऊँगी बहुत 2 धन्यवाद्
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