मनमोहनसिंह पर स्वतंत्र भारत की अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार की अगुवाई करने का आरोप लगाते हुए भाजपा ने मंगलवार को कहा कि इसरो द्वारा दुर्लभ एस-बैंड स्पेक्ट्रम आवंटन के कारण दो लाख करोड़ रुपए का नुकसान होने के ‘घोटाले’ में प्रधानमंत्री अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से नहीं बच सकते।
भाजपा ने प्रधानमंत्री से कुछ सीधे सवाल किए और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी पर भी निशाना साधते हुए कहा कि सत्तारूढ़ गठबंधन की प्रमुख होने के नाते क्या वह जनता को स्पष्टीकरण देंगी या फिर बिना जवाबदेही के सत्ता का सुख लेती रहेंगी।
भाजपा प्रवक्ता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि प्रधानमंत्री स्वतंत्र भारत की अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार की अगुवाई कर रहे हैं। वे एक ऐसी सरकार के मुखिया हैं, जिसके शासन में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं। यह हालिया घोटाला उसी विभाग में हुआ है, जिसका प्रभार खुद प्रधानमंत्री के पास है।
उन्होंने कहा कि इसरो की कंपनी द्वारा मामूली दामों पर स्पेक्ट्रम आवंटन करने में किसी ए. राजा या सुरेश कलमाड़ी का हाथ नहीं है, जिन पर सरकार पूरी जिम्मेदारी डाल दे। प्रधानमंत्री इस मामले में अपनी जिम्मेदारी और जवाबदारी से बच नहीं सकते।
एक अखबार की खबर के अनुसार वर्ष 2005 में इसरो की व्यावसायिक इकाई अंतरिक्ष कॉरपोरेशन लिमिटेड ने देवास मल्टीमीडिया के साथ करार किया और इस निजी कंपनी को 70 मेगाहर्ट्ज एस-बैंड का 20 वर्ष तक इस्तेमाल करने की लीज महज एक हजार करोड़ रुपए में दे दी।
सोनिया की चुप्पी पर सवाल : भाजपा ने इस मुद्दे पर सोनिया की चुप्पी पर भी सवाल उठाए हैं। प्रसाद ने कहा कि राष्ट्रमंडल खेलों में भ्रष्टाचार, 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला, आदर्श आवासीय सोसायटी घोटाला और सीवीसी की नियुक्ति के मुद्दे पर सोनिया गाँधी ने कुछ नहीं कहा, जबकि वे सत्तारूढ़ गठबंधन की प्रमुख हैं। अब एस-बैंड आवंटन का बड़ा घोटाला सामने आने के बाद क्या वे अपनी चुप्पी तोड़ेंगी या बिना जिम्मेदारी और जवाबदेही के सत्ता का सुख लेना जारी रखेंगी।
प्रसाद ने कहा कि भाजपा को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री स्पष्टीकरण देंगे। अगर वे चुप्पी बनाए रखते हैं तो इससे उन पर लगे आरोप ही और पुख्ता होंगे। क्या भाजपा इस मुद्दे की भी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से जाँच कराने की माँग करेगी, इस पर प्रसाद ने कहा कि इस बारे में फैसला राजग के घटक दलों की बैठक में किया जाएगा।
उन्होंने प्रधानमंत्री से सवाल उठाते हुए कहा कि स्पेक्ट्रम राष्ट्र की संपत्ति है। ऐसे में इसरो या किसी अन्य इकाई को किसी निजी कंपनी को एस-बैंड लीज पर देने का अधिकार क्यों दिया गया? जब बीएसएनएल को 20 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम आवंटन 12847 करोड़ रुपए में किया गया तो फिर 70 मेगाहर्ट्ज का आवंटन महज एक हजार करोड़ रुपए में क्यों हुआ।
प्रसाद ने कहा कि जब यह आवंटन हो रहा था तब प्रधानमंत्री ने इसकी सार्वजनिक नीलामी कराने पर जोर क्यों नहीं दिया। अगर नीलामी नहीं हुई तो क्या प्रधानमंत्री ने इसरो से कहा था कि वह स्पेक्ट्रम आवंटन का दाम तय करने के लिए किसी प्रभावी और तर्कसंगत तंत्र का इस्तेमाल करे।
प्रसाद ने कहा कि इसरो की व्यावसायिक इकाई और निजी कंपनी के बीच यह समझौता 2005 में हुआ था, जबकि अंतरिक्ष आयोग ने इस समझौते को जुलाई 2010 में निरस्त कर दिया। समझौता निरस्त करने का फैसला लेने में 10 वर्ष क्यों लगे? जब इस स्तर की अनियमितता हो रही थी तो पृथ्वीराज चव्हाण क्या कर रहे थे, जिनके पास हाल ही में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने से पहले अंतरिक्ष विभाग का प्रभार था। प्रसाद ने कहा कि यह भी एक बड़ा सवाल है कि इसरो के ही सेवानिवृत्त वैज्ञानिक सचिव को संगठन के साथ तुरंत कारोबार करने की अनुमति किन परिस्थितियों में दी गई।
इस सवाल पर कि अगर भाजपा सोचती है कि यह 2-जी स्पेक्ट्रम आवंटन से भी ‘बड़ा घोटाला’ है तो क्या वह प्रधानमंत्री से इस्तीफे की मांग नहीं करेगी, उन्होंने कहा कि भाजपा चाहती है कि इस मुद्दे पर और तथ्य सामने आएँ। हम पूरी तस्वीर साफ होने तक इंतजार करना चाहेंगे।
आरोप निराधार : दूसरी ओर प्रधानमंत्री कार्यालय ने मीडिया की इन खबरों को गलत बताया, जिनमें आरोप लगाया गया है कि एस-बैंड स्पेक्ट्रम के आवंटन में सरकार को नुकसान हुआ है। पीएमओ का कहना है कि इस मुद्दे पर कोई फैसला नहीं किया गया है और इसलिए राजस्व के नुकसान के आरोप का कोई आधार नहीं है।
बयान में कहा गया है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) के कार्यालय और अंतरिक्ष विभाग ने पहले ही बयान जारी कर इस मामले पर वस्तुस्थिति बताई है। यह स्पष्ट किया जाता है कि अंतरिक्ष या देवास को एस-बैंड स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल के लिए स्पेस सेगमेंट आवंटित करने के लिए सरकार ने कोई फैसला नहीं किया है। (भाषा)
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Posted on Wednesday, February 9, 2011 |
10:33:00 PM
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